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अपने जीवंत तथा मानवीय स्वरुप के लिए जाने जाने वाले भगवान जगन्नाथ, किसी साधारण मनुष्य के भांति बीमार भी पड़ते हैं और उनका उपचार भी होता है। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा एवं सुदर्शनजी को एक सौ आठ घड़ों के पानी से स्नान कराया जाता है, और उनका गजानन भेष में श्रृंगार किया जाता है। इसीलिए ही इस उत्सव को देवस्नान पूर्णिमा भी कहा जाता है। माना जाता है कि इतने ज्यादा पानी से नहाने के उपरांत चारों भगवानों को बुखार हो जाता है और इसीलिए आने वाले पंद्रह दिनों तक राज वैद्यों के द्वारा उनका उपचार किया जाता है। यह पंद्रह दिन भगवानों को अकेले एक गुप्त कमरे रख कर उनकी सेवा की जाती है और आम श्रद्धालुओं के लिए दर्शन बंद कर दिया जाता है। इसी समय को अणसर कहा जाता है।आयुर्वेदिक उपचारों के बाद जब भगवान ठीक होकर बाहर निकलते हैं तब किसी राजा की तरह ही भगवान का दरबार लगता है जहाँ इतने दिनों से आतुर भक्त उनके दर्शन कर पाते हैं। इस दिन को नवयोवन दर्शन कहा जाता है। नवयोवन के दो दिन बाद ही भगवान की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा का आयोजन किया जाता है। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
2m 46s · Jun 30, 2022
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