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आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : अर्चना जैन प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। आज के अंक के लिए हमने चुना है वर्ष 2002 की चर्चित फ़िल्म ’सुर’ का गीत "कभी शाम ढले तो मेरे दिल में आ जाना"। महालक्ष्मी अय्यर और साथियों की आवाज़ें, निदा फ़ाज़ली के बोल और एम. एम. क्रीम का संगीत। कैसे जुड़े एम. एम. क्रीम और निदा फ़ाज़ली फ़िल्म ’सुर’ के साथ? सुनिधि चौहान की आवाज़ में फ़िल्म के अन्य सभी गीत होने के बावजूद उनसे यह गीत क्यों नहीं गवाया गया? महालक्ष्मी अय्यर के चुनाव के लिए किन दो बातों का ख़याल रखा गया और उनका नाम किन्होंने सुझाया? क्यों महत्वपूर्ण था यह गीत फ़िल्म के लिए? क्यों इस गीत की तुलना ऑरकेस्ट्रल सिम्फ़नी के साथ की जाती है? जानिए इस गीत की तमाम विशेषताएँ आज के इस अंक में।
13m 27s · Mar 28, 2023
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