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स्नान पूर्णिमा के दिन किये जाने वाले गजानन भेष, भगवान जगन्नाथ का अपने भक्तों के प्रति प्रेम का एक उदाहरण है। बहुत वर्ष पहले महाराष्ट्र राज्य में गणपति भट्ट नमक एक परम गणेश भक्त रहा करते थे। भगवान गणेश के प्रति उनका समर्पण भाव इतना था कि, वह किसी भी और देवता के होने भर को भी नकार देते थे। उनके लिए श्रीगणेश ही साक्षात् परंब्रह्म का स्वरुप थे। एक बार पुरी से लौटे उनके एक मित्र ने उनसे भगवान जगन्नाथ की महिमा का बखान किया और उन्हें भी एक बार पुरी हो आने की सलाह दे डाली। लेकिन गणपति तो अटल थे, इसीलिए उन्होंने अपने मित्र का उपहास कर दिया। जैसे जैसे दिन बीतते गए उन्हें और अधिक लोग मिलते गए जो उनके सामने श्रीहरी विष्णु के इस अनूठे जगन्नाथ स्वरुप का वर्णन करते और गणपति उन्हें नकारते जाते।अंत में एक दिन तंग आकर गणपति ने कह डाला कि, वह पुरी चलने के लिए तैयार हैं मगर उनकी एक शर्त है। यदि भगवान जगन्नाथ परंब्रह्म हैं तो वह उन्हें अपने आराध्य गणेश जी के रूप में दर्शन देकर दिखाएँ। लंबी यात्रा के पश्चात गणपति भट्ट देवस्नान पूर्णिमा को पूरी मंदिर पहुंचे। वहां जो उन्होंने देखा उसपर उनकी ऑंखें खुली की खुली रह गई। स्नान के उपरांत भगवान जगन्नाथ के स्थान पर उन्हें नहाये हुए गणेश जी अपने साक्षात् रूप में नजर आये। गणपति भट्ट को अब एहसास हो चुका था कि भगवान जगन्नाथ ही परंब्रह्म हैं और वह उनके परम भक्त बन गए। इसी लीला को स्मरण करते हुए स्नान पूर्णिमा के दिन स्नान के उपरांत भगवान का गजानन भेष किया जाता है। Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices
3m 20s · Jul 1, 2022
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