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मरियम के साथ यात्रा [भाग - 10] मरियम के समान मौन एवं एकांत में रहने की जरूरत मरियम के समान मौन एवं एकांत में रहना शब्द का हमारे शरीर में शरीर-धारण करने में अनिवार्य है। प्रकाशना ग्रन्थ 3: 20 मैं द्वार के सामने खड़ा हो कर खटखटाता हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ। 1 राजा 19:11-13 11) प्रभु ने उस से कहा, "निकल आओ, और पर्वत पर प्रभु के सामने उपस्थित हो जाओ“। तब प्रभु उसके सामने से हो कर आगे बढ़ा। प्रभु के आगे-आगे एक प्रचण्ड आँधी चली- पहाड़ फट गये और चट्टानें टूट गयीं, किन्तु प्रभु आँधी में नहीं था। आँधी के बाद भूकम्प हुआ, किन्तु प्रभु भूकम्प में नहीं था। 12) भूकम्प के बाद अग्नि दिखई पड़ी, किन्तु प्रभु अग्नि में नहीं था। अग्नि के बाद मन्द समीर की सरसराहट सुनाई पड़ी। 13) एलियाह ने यह सुनकर अपना मुँह चादर से ढक लिया और वह बाहर निकल कर गुफा के द्वार पर खड़ा हो गया। तब उसे एक वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी, “एलियाह! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?“ स्तोत्र ग्रन्थ 46:11 "शान्त हो और जान लो कि मैं ही ईश्वर हूँ" एकांत vs अकेलापन दोनों अलग हैं। हम भीड में होते हुए भी हम अकेले हो सकते हैं। एकांत में रहना बहुत अनुवार्य है। याकूब का पत्र 4: 4 कपटी और बेईमान लोगो! क्या आप यह नहीं जानते कि संसार से मित्रता रखने का अर्थ है ईश्वर से बैर करना? जो संसार का मित्र होना चाहता है, वह ईश्वर का शत्रु बन जाता है। सन्त लूकस 2:19 मरियम ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा और वह इन पर विचार किया करती थी। अधिक जानकारी के लिए, क्लिक करेंः https://greatergloryofgod.blogspot.com/2020/11/10.html
22m 12s · Nov 21, 2020
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