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Dincharya | Shrikant Varma

Pratidin Ek Kavita

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Episode  ·  1 Play  ·  2:01  ·  Dec 6, 2024

About

दिनचर्या | श्रीकांत वर्माएक अदृश्य टाइपराइटर पर साफ़, सुथरेकाग़ज़-साचढ़ता हुआ दिन,तेज़ी से छपते मकान,घर, मनुष्यऔर पूँछ हिला गली से बाहर आताकोई कुत्ता।एक टाइपराइटर पृथ्वी पररोज़-रोज़छापता हैदिल्ली, बंबई, कलकत्ता।कहीं पर एक पेड़अकस्मात छपकरता है सारा दिनस्याही मेंन घुलने का तप।कहीं पर एक स्त्रीअकस्मात उभरकरती है प्रार्थनाहे ईश्वर! हे ईश्वर!ढले मत उमर।बस के अड्डे परएक चाय की दुकानदिन-भर बुदबुदाती है‘टूटी हुई बेंच परबैठा है उल्लू का पट्ठापहलवान।’जलाशय पर अचानक छप जाता हैमछुए का जालचरकट के कोठे सेउतरती है धूपऔर चढ़ता हैदलाल।एक चिड़चिड़ा बूढ़ा थका क्लर्क ऊबकर छपे हुए शहर कोछोड़ चला जाता है।

2m 1s  ·  Dec 6, 2024

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