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इतिहास | नरेश सक्सेना बरत पर फेंक दी गई चीज़ें, ख़ाली डिब्बे, शीशियाँ और रैपर ज़्यादातर तो बीन ले जाते हैं बच्चे,बाकी बची, शायद कुछ देर रहती हो शोकमग्नलेकिन देखते-देखते आपस में घुलने मिलने लगती हैं।मनाती हुई मुक्ति का समारोह।बारिश और ओस और धूप और धूल में मगनउड़ने लगती हैं उनकी इबारतेंमिटने लगते हैं मूल्य और निर्माण की तिथियाँछपी हुई चेतावनियाँ होने लगतीं अदृश्यकंपनी की मॉडल के स्तनों पर लगने लगती है फफूंदचेहरे पर भिनकती हैं मक्खियाँएक दिन उनके ढेर पर उगता हैएक पौधा-पौधे में फूलफूलों में उन सबका सौंद्यऔरख़ुश्बू में उनका इतिहास।
2m 20s · Dec 11, 2024
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