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इतना तो ज़िन्दगी में किसी की ख़लल पड़े | कैफ़ी आज़मीइतना तो ज़िन्दगी में किसी की ख़लल पड़ेहँसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़ेजिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी-पी के अश्क-ए-ग़मयूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़ेएक तुम के तुम को फ़िक्र-ए-नशेब-ओ-फ़राज़ हैएक हम के चल पड़े तो बहरहाल चल पड़ेमुद्दत के बाद उस ने जो की लुत्फ़ की निगाहजी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़ेसाक़ी सभी को है ग़म-ए-तश्नालबी मगरमय है उसी के नाम पे जिस के उबल पड़े
2m 4s · Dec 12, 2024
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